Web Series, हम और सीख
अभी परसो हम नहा धो खा पी के आराम से बैठे की पंचायत का SEASON 2 देखेंगे। फ़ोन लिए और आराम से बिस्तर पे लेट के देखना चालू किये पहला एपिसोड। अंदर से एक अलग ही लेवल का उत्साह भरा हुआ था। और आखिर हो भी क्यों न इतना दिन इंतज़ार किये हैं भला इसके लिए। देखते देखते पहला दूसरा तीसरा चौथा एपिसोड खत्म हुआ। पांचवा एपिसोड शुरू करते की तब तक शाम हो गयी और ये शुरू हुई बारिश। भीषण गर्मी के बाद ये कुछ उम्मीद की किरण जागी और हमारे खिड़की पर बूंदो के साथ ठंडी ठंडी हवा में लिपटे हुए हम तक आ पहुंची।
मतलब समझिये ऐसा था की एक तो पंचायत देखने का EXCITEMENT उसपे से से मौसम का अलग ही जादू। और ये हमने बना दी चाय। गरम गरम चाय के साथ कुछ हल्का नाश्ता और फिर शुरू हुआ पांचवा एपिसोड। धीरे धीरे हम 5 से 6 और 6 से 7 पे पहुंचे। और तब तक हो गया समय रात के खाने का। आज का हिसाब किताब कुछ ऐसा था की आज खाना मम्मी नहीं बल्कि हम बना रहे थे। अब हम बड़बोले बन के ये तो बोल दिए थे की हाँ हाँ खाना हम बनाएंगे लेकिन इधर पंचायत के आधे अधूरे पड़ाव पे पहुंच चुके थे। मतलब क्या ही बोले। अलग ही किस्म का असमंजस था।
फिर क्या, हमने सोचा की आखिर कुछ तो करना पड़ेगा। बस जैसे तैसे हमने EARPHONE लगाया और इधर दोनों काम एक साथ करने लगे। मतलब दृश्य कुछ ऐसा था की उधर तवे पे पक रही थी रोटी और इधर फूट रहे थे हमार हँसीे के फव्वारे। फटाफट बनी रोटी और इधर पूरा हुआ हमारा सांतवा एपिसोड। जैसे तैसे हड़बड़ में हमने खाना खाया और आ गए वापस अपने बिस्तर पर फ़ोन लेकर। और ये शुरू हुआ हमारा आखिरी पड़ाव। इस सीरीज का जो आखिरी एपिसोड है वो कुछ अलग ही है जिसे शायद बता या समझा पाना थोड़ा मुश्किल है।
शुरू से लेकर अंत के सारे एपिसोड में कहानी कुछ ऐसी रही की कभी हँसी कभी दुःख कभी गुस्सा चलता रहा लगातार हर एपिसोड में। समझ लें कुछ ऐसी चुनौतियां आयी जिसे कहानी के माध्यम से बहुत अच्छी तरह दिखलाया गया। हमे लगा था की SEASON 1 की तरह यह भी अंतिम में कुछ ऐसा होगा जिससे कहानी अधूरी रह जाये और शायद तीसरे part को देखने का उत्साह बरक़रार रहे। हालाँकि हम इसकी निंदा नहीं कर रहे बल्कि यह कह रहे की आखिरी एपिसोड ने हमे बिलकुल हिला कर रख दिया। और शायद जिन्होंने भी देखा है उन सब को कहीं न कहीं एक कंपन सी ज़रूर महसूस हुई होगी।
इंसान चाहे हर वक़्त लोगो से घिरा रहे लेकिन उसके जीवन में एक ऐसा पल आता है जब वो कहीं न कहीं अकेला ज़रूर महसूस करता है। कई बार लोग परिवार के साथ होकर भी अकेला महसूस करते हैं और कई तो जन्म से ही बिना परिवार के रहते है। लेकिन ये अकेलापन इंसान को अंदर से पूरी तरह खा जाता है। जीवन मृत्यु दोनों ही एक विधि है। ख़ुशी और दुःख भी इसके ही हिस्से हैं लेकिन मनुष्य अपने पुरे जीवनकाल में अपने परिवार दोस्त साथी काम सब से घिरा रहता है और जब मृत्यु का समय होता है तो वो इस संसार में अक्सर किसी न किसी को अकेला छोड़ जाता है। इस सत्य से हम न भाग सकते हैं न इसे झूठला सकते हैं बल्कि हमे इसे स्वीकार करना ही होगा। ये ज़ाहिर सी बात है की उस पल के लिए दुःख होता है पर वो दुःख भी क्षणिक है। पर अगर कोई दुःख उससे भी कष्टदायी है तो वो है लोगो के बीच रह कर भी अकेला महसूस करना और शायद हर तीसरा व्यक्ति आज इस दुनिया में कहीं न कहीं इस दुःख से पीड़ित है।
आज तक हम बहुत सारे फिल्म और WEB SERIES देखे पर इतना गहराई तक अगर किसी ने छुआ है तो वो है पंचायत। ये भाव शायद मेरे मन में ही नहीं बल्कि हर किसी के मन में प्रकट हो रहे होंगे जिन्होंने इसे देखा और समझा है। इस कदर मिटटी और जड़ से जुड़ी हुई कहानियां आज के समय में कम ही देखने मिलती है और वो भी जिसमे कुछ सीखने को मिले। मनुष्य के सारे भाव का मिश्रण और सभी किरदार का उनके रोल के प्रति इतना समर्पण और कहानी को इतनी सुंदरता और मिठास के साथ प्रस्तुत करना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला है।
खैर फ़ोन बंद करते ही हमारे चेहरे पे एक मुस्कराहट और आंसू के कुछ बूंद तकिये के साथ लिपट गए। अब इतनी मनमोहक कहानी देखने के बाद भला कैसे ही नींद आये। तो कुछ देर तक हम अपने मन के अंदर बहुत सारी बातों का विश्लेषण करने लगे। कुछ अच्छी यादें तो कुछ बुरी। शायद बहुत कुछ एहसास हो रहा था एक साथ। हर जीवित और धुंधली याद को एक किनारे पर छोड़ कर किसी तरह हम नींद के आगोश में जा गिरे। अब मन इतना मचल गया था की हमें ये आख़िरकार लिखना ही पड़ा। अगर पढ़ रहे हैं तो बताइयेगा ज़रूर कैसा लगा पंचायत और हमारे शब्दों की कृति।